बस यही प्रयास कि लिखती रहूँ मनोरंजन नहीं आत्म रंजन के लिए

Saturday 27 January 2018

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ
हौले से मन के पंख फैलाऊँ
पंख फैलाकर मस्त उड़ जाऊँ
चुपके चुपके चुपके चुपके

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ

यूँही बहारों संग बह जाऊँ
रंगो से अपने सब मन छू जाऊँ
गमो को भुलाकर फ़िर से उड़ जाऊँ
चुपके चुपके चुपके चुपके

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ

मधुकर के संग नए रागों को गाऊँ
बागों में कुसुम संग मैं खिलखिलाऊँ
फ़िर रस को चुराकर मगन उड़ जाऊँ
चुपके चुपके चुपके चुपके

चुपके से तितली मैं बन जाऊँ
   
                             #आँचल 

Friday 26 January 2018

ये कैसा गणतंत्र है

ये कैसा गणतंत्र है

ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ बस कपटों का तंत्र है

जिस देश की भूमि तिलक लगाती
चंदन सम लहू बलिदानों की
उसी देश में छीन जाती थाली
माटी के वीर किसानों की

जहाँ पूजी जाती है नारी
नदियों और पाषाणों में
वही तौल दी जाती है वो
 रसमो के बाज़ारों में

जिस देश का आज पहुँच गया
दुनिया के सभी ठिकानों पर
उस देश का कल भटक रहा
दो रोटी को चौराहों पर

ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ बस कपटों का तंत्र है

माना भारत है देश महान
पर कमियों से ना रहो अंजान
जो बसती हो अगर भारत में जान
तो दे दो भारत को नयी पहचान

वरना फ़िर सवाल उठ जायेंगे
जो मन को ठेस पहुँचायेंगे
की.....

ये कैसा गणतंत्र है
जहाँ बस कपटों का तंत्र है

                            #आँचल 

Monday 22 January 2018

माँ सरस्वती माँ शारदे

माँ सरस्वती माँ शारदे


माँ सरस्वती माँ शारदे
             जीवन का हमको सार दे
माँ सरस्वती माँ शारदे

हंसासिनी,पद्मसिनी,सौदामिनी
वंदन करें तुझे रागिनी
माँ छेड़े वीणा के तान ऐसे
दुर्मति की हो काट जैसे
निज मन स्वरों को सुधार दे
माँ तू है वीणावादिनी

माँ सरस्वती माँ शारदे
             जीवन का हमको सार दे
माँ सरस्वती माँ शारदे

मातेश्वरी,वागेश्वरी,ज्ञानेश्वरी
माया की तू परमेश्वरी
माँ जग में है अंधियार ऐसे
अमावस की हो रात जैसे
सोम ज्ञान का तू प्रकाश दे
माँ तू है जगदीश्वरी

माँ सरस्वती माँ शारदे
              जीवन का हमको सार दे
माँ सरस्वती माँ शारदे

                           -आँचल 

Sunday 21 January 2018

देखो ऋतुराज बसंत है आया

देखो ऋतुराज बसंत है आया

देखो ऋतुराज बसंत है आया
उत्सव उमंग के रंग है लाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

जब सुनी कलरव की हिंडोल नाद
और बही बसंत की मस्त बहार
तब नव उत्थान का समय है आया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

जब अलसी संग नाचे कुसुम
और सजी धरती जैसे सुंदर कुंज
तब सरसों ने ब्याह रचाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

जब पेड़ों पे पल्लव आए
और भौरों ने सोहर गाए
तब प्रकृति ने उत्सव मनाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

देखो ऋतुराज बसंत है आया
उत्सव उमंग के रंग है लाया
देखो ऋतुराज बसंत है आया

                              -आँचल 

Friday 19 January 2018

"बवाल" पे बवाल

"बवाल"पे बवाल

ये भारत है जनाब
यहाँ हर बात पर उठते कई सवाल
और हर सवाल पर होते बहुत बवाल
कुछ छोटे बवाल कुछ बड़े बवाल
कुछ हलके बवाल कुछ गहरे बवाल
हर रोज़ ही होते कई बवाल

जब सड़क पे दो गाड़ी भिड़ी
तब औकात पे उठे सवाल
और ट्रैफिक जाम का हुआ बवाल

एक जोड़ा आपस में झगड़ गया
और घरवालों तक पे उठे सवाल
लो तलाक का हुआ बवाल

दो दिल आपस में धड़क गए
और जाती-धर्म पे उठे सवाल
लो सुर्खिया बटोरता हुआ  बवाल

क्या तेरा क्या मेरा है
जब जायदाद पर उठे सवाल
तब कचहरी में माँ बाप को कोसता हुआ बवाल

जब धर्म - मज़हब टकरा गए
तब ईश्वर - अल्लाह पर उठे सवाल
और लोकतंत्र में हुआ बवाल

बाल श्रम,बलात्कार सब मुद्दे बने मजाक
और सम्मान पर उठे सवाल
तब पद्मावत पर हुआ बवाल

ये भारत है जनाब
यहाँ हर बात पर उठते कई सवाल
और हर सवाल पर होते बहुत बवाल

पर ठहरो,ज़रा सोचो
क्या वाक़ई हर सवाल पर होते हैं बवाल??

जब भगवान चले वृद्धाश्रम
तब संस्कारों पे उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब विवाह में हुई सौदेबाज़ी
तब रसमो पे उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब नन्हे कंधों ने ढोए बोझ हज़ार
तब मानवता पे उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब बिटिया बनी दरिंदों की शिकार
तब उसके चरित्र पर उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब भगवान से बड़ा हुआ इंसान
तब अंधे विश्वास पर उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब गरीब की रोटी खाते भ्रष्ट तमाम
तब प्रशासन पर उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

जब समाज का घटिया रूप दिखा
तब जन मन में उठे सवाल
पर क्यू ना हुआ बवाल?

ये भारत है जनाब
यहाँ हर बात पर उठते कई सवाल
पर बस बकवास पर होते हैं बवाल
क्युंकि डर जाते हैं कई बवाल
समाज के सवालों के आगे
क्युंकि झुक जाते हैं कई बवाल
समाज की घटिया सोच के आगे

ये भारत है जनाब
यहाँ भले ना हो हर सवाल पे बवाल
पर होता रहेगा बवाल पे बवाल
लो कर डाला हमने भी "बवाल"पे बवाल

                                         #आँचल 

Monday 15 January 2018

हर अलाव कुछ कहता है

हर अलाव कुछ कहता है

हर अलाव कुछ कहता है
जीवन को रूप नया देता है
जो सीखा इसने जलते जलते
बुझकर वो सीख सिखाता है

खुद जल कर ये राख हो जाता
पर राहतों की मुस्कान दे जाता
गैरों के सुख में सुख को ढूँढ़ो
जीने का ये बेहतर ढंग सिखाता

वर्तमान का बोध कराता
कर्म का अहम पाठ पढ़ाता
समय यही है कुछ कर जाने का
बुझ कर ये तन कुछ काम ना आता

क्षणभंगुर इस जग में बंदे
गुरूर कहाँ टिक पाता
गरमाहट दे जो त्याग,प्रेम की
वो मर कर अमर हो जाता

हर अलाव कुछ कहता है
जीवन को रूप नया देता है
जो सीखा इसने जलते जलते
बुझकर वो सीख सिखाता है

                               -आँचल